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दि॒वश्चि॑द्घा दुहि॒तरं॑ म॒हान्म॑ही॒यमा॑नाम्। उ॒षास॑मिन्द्र॒ सं पि॑णक् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divaś cid ghā duhitaram mahān mahīyamānām | uṣāsam indra sam piṇak ||

पद पाठ

दि॒वः। चि॒त्। घ॒। दु॒हि॒तर॑म्। म॒हान्। म॒ही॒यमा॑नाम्। उ॒षस॑म्। इ॒न्द्र॒। सम्। पि॒ण॒क् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) तेजस्वि राजन् ! जैसे (महान्) महानुभाव कोई (दिवः, दुहितरम्) कन्या के सदृश वर्त्तमान सूर्य्य की (महीयमानाम्) विस्तीर्ण (उषासम्) प्रातर्वेला के (चित्) सदृश (सम्, पिणक्) पीसता है, वैसे (घ) ही अविद्या और दुष्टों का निवारण करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो राजपुरुष और राजा अन्यायरूप अन्धकार को निवृत्त करके विद्या और न्यायरूप सूर्य्य को उत्पन्न करते, वे सूर्य्य के सदृश प्रतापी होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र राजन् ! यथा महान्त्सूर्य्यो दिवो दुहितरं महीयमानामुषासञ्चित् सम्पिणक् तथा घाविद्यां दुष्टांश्च निवारय ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः) सूर्य्यस्य (चित्) इव (घ) इव। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (दुहितरम्) कन्यामिव वर्त्तमानाम् (महान्) (महीयमानाम्) विस्तीर्णाम् (उषासम्) प्रातर्वेलाम् (इन्द्र) (सम्) (पिणक्) पिनष्टि ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये राजपुरुषा चान्यायान्धकारं निवार्य्य विद्यां न्यायार्कञ्च जनयन्ति ते सूर्य्य इव प्रतापिनो जायन्ते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजपुरुष व राजे अन्यायरूपी अंधकार नाहीसा करून विद्या व न्यायरूपी सूर्य उत्पन्न करतात ते सूर्याप्रमाणे प्रतापी असतात. ॥ ९ ॥